आजकल अपराध और दबदबे का अजीब मेल देखा जा रहा है। सत्तर के दशक में अपराधियों को नेता बनाने का जो पौधा संजय गांधी ने रोपा था वह अब फल देने लगा है। अपराधी नेताओं और उनकी दूसरी पीढ़ी समाज को धकिया कर रसातल तक ले जाने की अपनी मुहिम पर पूरे ध्यान से लगी हुई है। इस हफ्ते के अखबारों में दो खबरें ऐसी हैं, जो सामाजिक पतन की इबारत की तरह खौफनाक हैं और दोनों ही सामाजिक जीवन में घुस चुके अपराध के समाजशास्त्र की कहानी को बहुत ही सफाई से बयान करती हैं। पहली तो हरियाणा की खबर, जहां 19 साल पहले बुढ़ापे की दहलीज पर कदम रख चुके एक अधेड़ पुलिस अफसर ने एक 14 साल की बच्ची के साथ जबरदस्ती की और जब लड़की ने आत्महत्या कर ली तो उसके परिवार वालों को परेशान करता रहा। 19 साल के अंतराल के बाद जब अदालत का फैसला आया तो उस अफसर को छह महीने की सजा हुई। अब पता लग रहा है कि उस अफसर को अपनी हुकूमत के दौरान राजनेता ओम प्रकाश चौटाला मदद करते रहे, उसे तरक्की देते रहे और केस को कमजोर करके अदालत में पेश करवाया। जानकार बताते हैं कि केस को इतना कमजोर कर दिया गया है कि हाईकोर्ट से वह अपराधी अफसर बरी हो जाएगा। राजनेता की मदद के बिना कानून का रखवाला यह अफसर अपराध करने के बाद बच नहीं सकता था।
दूसरा मामला उत्तर प्रदेश के एक विधायक के बेटे का है। यह बददिमाग लड़का दिल्ली के किसी शराबखाने में घुसकर गोलियां चलाकर भाग खड़ा हुआ। उसी शराबखाने में बीती रात उसकी बहन गई थी और अपना पर्स भूलकर चली आई थी। उसी पर्स को वापस लेने अपनी बहन के साथ गया लड़का गोली चलाकर रौब गांठना चाहता था। उत्तर प्रदेश की सरकारी पार्टी के विधायक का यह लड़का दिल्ली पुलिस के हत्थे चढ़ गया और आजकल पुलिस की हिरासत में है। यह दो मामले तो ताज़े हैं। ऐसे बहुत सारे मामले पिछले कुछ वर्षो में देखने में आए हैं। जेसिका लाल और नीतीश कटारा हत्याकांड तो बहुत ही हाई प्रोफाइल मामले हैं, जिसमें नेताओं के बच्चे अपराध में शामिल पाए गए हैं। ऐसे ही और भी बहुत सारे मामले हैं, जिनमें नेताओं के साथ-साथ अफसरों के बच्चे भी आपराधिक घटनाओं में शामिल पाए गए हैं। अफसोस की बात यह है कि जब ये बच्चे अपराध करते हैं तो उनके ताकतवर नेता और अफसर बाप उन्हें बचाने के लिए सारी ताकत लगा देते हैं। और, यही सारी मुसीबत की जड़ है।
समाज को इन अपराधी नेताओं और अफसरों ने ऐसे मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहां से वापसी की डगर बहुत ही मुश्किल है। यह मामला केवल उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और पंजाब तक ही सीमित नहीं है। इस तरह की प्रवृत्ति पूरे देश में फैल चुकी है। अगर इस प्रवृत्ति पर फौरन काबू न कर लिया गया तो बहुत देर हो जाएगी और देश उसी रास्ते पर चल निकलेगा, जिस पर पाकिस्तान चल रहा है या अफ्रीका के बहुत सारे देश उसी रास्ते पर चलकर अपनी तबाही मुकम्मल कर चुके हैं। लेकिन अपराधी तत्वों का दबदबा इतना बढ़ चुका है कि इन अपराधियों को काबू कर पाना आसान बिलकुल नहीं होगा। हालात असाधारण हो चुके हैं और उनको दुरुस्त करने के लिए असाधारण तरीकों का ही इस्तेमाल करना होगा। नेहरू के युग में यह संभव था कि अगर अपराधी का नाम ले लिया जाए तो वह दब जाता था, डर जाता था और सार्वजनिक जीवन को दूषित करना बंद कर देता था। जवाहर लाल नेहरू ने एक बार अपने मंत्री केशव देव मालवीय को सरकार से निकाल दिया था, क्योंकि दस हजार रुपए के किसी घूस के मामले में वे शामिल पाए गए थे। उन्होंने एक बार एक ऐसे व्यक्ति को गलती से टिकट दे दिया, जिसके ऊपर आपराधिक मुकदमे थे। जब मध्य भारत में चुनावी सभा के दौरान उनको पता चला कि यह तो वही व्यक्ति है, जिसे उन्होंने गिरफ्तार करवाया था। नेहरू जी ने उसी चुनावी मंच से ऐलान किया कि इस आदमी को गलती से टिकट दे दिया गया है, उसे कृपया वोट मत दीजिए और उसे चुनाव में हरा दीजिए। वह आदमी कोई मामूली आदमी नहीं था। मंत्री रह चुका था, रजवाड़ा था और आज के एक बहुत बड़े नेता का पूज्य पिता था। आज जब हम देखते हैं कि कांग्रेस समेत सभी राजनीतिक पार्टियां ऐसे लोगों को टिकट देना पसंद करती हैं जो अपनी दबंगई के बल पर चुनाव जीत सकें तो जवाहर लाल नेहरू के वक्त की याद आना स्वाभाविक भी है और जरूरी भी। जाहिर है कि नेहरू ने राजनीतिक जीवन में जिस शुचिता की बुनियाद रखी थी, उनके वंशज संजय गांधी ने उसके पतन की शुरुआत का उद्घाटन कर दिया था। बाद में तो सभी पार्टियों ने वही संजय गांधी वाला तरीका अपनाया, जिसके चलते आज राजनीतिक व्यवस्था गुंडों के हवाले हो चुकी है। अगर यही व्यवस्था चलती रही तो मुल्क को तबाह होने का खतरा बढ़ जाएगा। इस हालत से बचने के लिए सबसे जरूरी तो यह है कि अपराधी नेताओं और अफसरों के दिमाग में यह बात बैठा दी जाए कि जेसिका लाल और नीतीश कटारा के हत्यारों की तरह ही हर बददिमाग सिरफिरे को जेल में ठूंस देने की ताकत कानून में है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि कानून का इकबाल बुलंद करने वाले तक भी कई मामलों में शामिल पाए जाते हैं। ऐसे हालात में घूम-फिर कर ध्यान मीडिया पर ही जाता है। पिछले दिनों जितने भी हाई प्रोफाइल मामलों में न्याय हुआ है, उसमें मीडिया की भूमिका अहम रही है। इस बार भी हरियाणा वाले अपराधी अफसर के मामले में मीडिया ने ही सच्चाई को सामने लाने का अभियान शुरू किया है और उम्मीद है कि रुचिका की मौत के लिए जिम्मेदार अपराधी को माकूल सजा मिलेगी।
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