Monday, December 7, 2009

मुद्दे, राजनीति के सुहाग हैं. बिन मुद्दे राजनीति उजड़ी, सूनी और अर्थहीन है. प्रसंग था, अर्थनीति, महंगाई और देश के गरीब. लोकसभा में डॉ राममनोहर लोहिया ने पहले ही भाषण में कहा, इस देश के एक नागरिक की आमद साढ़े तीन आने रोजाना है. इसके पहले वह संसद के बाहर कह चुके थे. प्रधानमंत्री पर रोज पच्चीस हजार खर्च होते हैं. यह बहस ऐतिहासिक दस्तावेज बन गया. राजनीति में भ्रष्टाचार पर संसद में पहली आवाज फ़ीरोज गांधी ने उठायी. मशहर कानूनविद एजी नूरानी की चर्चित पुस्तक आयी थी. शायद नेहरूजी के कार्यकाल के अंतिम दौर में. नाम था मिनिस्टर्स मिसकंडक्ट. इससे समाजवादी सुरेंद्रनाथ द्विवेदी ने सवाल उठाया. मामला कुल साढ़े बारह हजार का था. केशवदेव मालवीय जैसे तपे नेता को मंत्री पद छोड़ना पड़ा. आज मुद्दे क्यों राजनीति से गायब हैं? क्या ऐसे सवाल नहीं रहे. महंगाई पर लोकसभा में बहस हई. तीन-चार दिन पहले. बमुश्किल चालीस सांसद थे. न पक्ष का कोई कद्दावर नेता, न विपक्ष का. शरद पवार ने हास्यास्पद बातें कीं. कहा, महंगाई बढ़ सकती है. राज्य नियंत्रण रखें. वगैरह-वगैरह. इसके पहले पवार, चार नवंबर को कह चुके हैं, अगली फ़सल आने तक महंगाई से राहत नहीं. कुछेक महीनों तक चीनी के दाम नहीं घटेंगे. आनेवाले महीनों में प्याज की कमी बनी रहेगी. कृषि मंत्री ने यह भी फ़रमाया, चावल के घरेलू उत्पादन में कमी होगी. उसी दिन योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेकसिंह अहलूवालिया ने कहा, खाद्यान्न कीमतें काबू में करना बहत कठिन. पर इन सवालों पर कोई सार्थक बहस नहीं. कौन पूछे इन लोगों से कि महंगाई क्यों नहीं रुक सकती? 19 नवंबर को फ़ोर्ब्स पत्रिका ने भारत के संपत्तिवानों की सूची जारी की. वर्ष 2009 में देश के सौ अमीरों के पास देश की 25 फ़ीसदी संपत्ति है. पूरी मीडिया में यह खबर सुर्खियों में छपी. देश के 100 धनी लोगों के पास करीब 27600 करोड़ डॉलर की संपत्ति. यह राशि देश के कुल जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) की 25 फ़ीसदी है. रिपोर्ट के अनुसार, सबसे अमीर धनवानों की संख्या, पिछले वर्ष 27 थी, अब 52 हो गयी है.

अर्थ अर्जन बहत अच्छी चीज है. बिना अर्थ, आज के माहौल में देश आगे नहीं बढ़ेगा. इसलिए साफ़ समझिए संपत्ति सृजन सबके हित में है. पर सवाल संपत्ति बढ़ने से नहीं है. मूल प्रश्न है कि किसी देश और समाज के 52 लोगों के हाथ में देश की जीडीपी का 25 फ़ीसदी हिस्सा कैसे रहेगा? क्यों रहेगा? क्यों भारत के अमीर ऐसे आलीशान घर बनायेंगे, जो दुनिया में किसी के पास नहीं हैं? धनियों और दौलतवानों के स्वर्ग अमेरिका में भी नहीं हैं. पत्नियों को चार-चार सौ करोड़ के बोइंग विमान जन्मदिन का तोहफ़ा देंगे? दूसरी ओर महंगाई की मार से त्रस्त आदमी चीनी, दाल, तेल, चावल के लिए भी तरसेगा. वह कौन सी अर्थनीति लोकसभा तय कर रही है, जिसमें अर्थव्यवस्था के अंतरविरोध नहीं उठ रहे हैं? बहस में वह धार क्यों नहीं आ रही कि इस देश की अर्थनीति में क्या सुधार चाहिए? क्यों विकास के लाभ रिस कर नीचे तक नहीं पहंच रहे? देश के दो बड़े उद्योगपति भाइयों के झगड़े लोकसभा में छाये रहते हैं. अपने प्रिय बिजनेस पेपर में पढ़ा. 28 नवंबर को. जूते का विज्ञान. देश में सबसे महंगे चार जूते कै से हैं? उनकी टेक्नोलॉजी क्या है? उनकी कीमत कैसे 11000 से लेकर 6000-6500 तक हैं? क्या यह देश ‘सुपररिच’ (अत्यंत धनाढ्य) का देश बन गया है?

26/11 पर लोकसभा में झड़प हई. प्रणब मुखर्जी और लालकृष्ण आडवाणी के बीच. मुद्दा था, कितने लोगों को मुआवजा मिला. क्या इस प्रसंग में इससे बड़ा सवाल नहीं था? सवाल तो यह उठना चाहिए कि 26/11 से इस मुल्क ने क्या सीखा? क्या हमारा ‘क्राइसिस मैनेजमेंट’ सुधरा? याद करिए, एनडीए का राज. जब प्लेन हाइजैक कर अफ़गानिस्तान के कंधार ले जाया गया. कई घंटे तक देश की टॉप क्राइसिस टीम नहीं बैठ सकी, क्योंकि उनमें को-ओर्डनेशन नहीं था. इसी तरह 26/11 में दिल्ली से एनएसजी के जवानों को मुंबई पहंचने में 12 घंटे से अधिक लग गये? क्या इस देश ने कभी उन लोगों के परिवार से पूछा, जो इसमें मार डाले गये? रांची के एक होनहार युवा मलेश बनर्जी मुंबई में आतंकवादियों द्वारा मारे गये. उनके पिता प्रो मानेंदु बनर्जी ने सिर्फ एक पंक्ति कहा- ‘द चैप्टर इज क्लोज्ड’. इस दर्द को कौन समङोगा. घटना के एक साल बाद उनकी यह प्रतिक्रिया पढ़ कर मन बेचैन रहा. कौन समङोगा यह पीड़ा? मुंबई की पुलिस प्रोफ़ेशनल मानी जाती है. पर इन दिनों वहां आपस में एक-दूसरे के खिलाफ़ पुलिस के बड़े अफसर बयान दे रहे हैं. मानो पुलिस पुलिस बल नहीं होकर राजनीतिक दल हो गये हैं. क्या यही शासन-प्रशासन है? क्या इसी तरह देश चलेगा? आतंकवादी हमलों के बरक्स पुलिस आधुनिकीकरण के बारे में देश के तीन विशेषज्ञों ने 25 नवंबर को ही अपनी राय व्यक्त की है. किरण बेदी ने, प्रो ब्रह्मचेल्लानी और प्रो एस चंद्रशेखरन ने. तीनों विशेषज्ञ हैं. तीनों की दृष्टि में इस दिशा में कोई ठोस काम नहीं नहीं हआ. क्यों लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभाओं में सिस्टम से जुड़े सवाल उठ ही नहीं रहे? कहां भटक गयी राजनीति? और तो और, देश का मानस किधर जा रहा है? मुंबई की 26/11 की घटना को कई जगह ‘मार्केटिंग टूल’ (बाजारू स्मृति) के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश भी हई. क्या बाजार से जीवन के मूलभूत सवाल और सत्व भी नहीं बचेंगे?

लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट आयी. आनन-फ़ानन में. उस पर कोई गंभीर बहस नहीं. लगभग दो दशक एक रिपोर्ट देने में ! अतीत में भी अनेक आयोग बने. पर उन रिपोटाब का क्या हआ? क्या देश इसी रास्ते चलेगा? ये सवाल कहां उठेंगे? किस गली-मुहल्ले-चौराहे पर? देश नाजुक मोड़ पर खड़ा है. पर इसे समझने और जानने की कोशिश कहां हो रही है?

SOURCE:PRABHAT KHABAR

6 comments:

  1. तो कुछ करते क्यों नही भाई, ब्लाग लिखने से काम नही चलने वाला

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  2. bahut sahi apane likha hai.
    aur hum badlenge is tasvir ko.
    keep away...very good

    One is phrase that.
    if u r alone means u r doing very good or very bad.

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  3. aapke bichar bahut hi achchhe hai aap hamse milo ya hamare bicharo ko deko ham kam karane mne bishawash karate hai.
    bhagyodayorganic.blogspot.com

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  4. अपराधियों का ज्‍वांइट वेंचर, लुटेरों का प्रायवेट लिमिटेड है ।
    टेक्‍स भरने को लंगोटी गिरबी गरीब की अपनी जगह, स्विस बेंक में नेताओं के खाते अपनी जगह ।।

    अर्थशास्‍त्री तो हैं ही, उच्‍च शिक्षित मंत्रियों की फौज भी सरकार में ।
    गरीबों पर मंहगाई का दंश अपनी जगह, कठपुतिलियों की डोर भी अपनी जगह ।।

    क्‍या बेबसी इस देश की, तुष्‍टीकरण से हो गई ।
    जवानों का खून बहे अपनी जगह, आतंकियों को सरकारी शह अपनी जगह ।।

    अमेरिकी आदेश पर नीतियॉं बन रहीं इस देश में ।
    भारतीय छात्रों से डरे बुश ओबामा अपनी जगह, शिक्षा की सिब्‍बल नीति अपनी जगह ।।

    भूखा, नंगा, बेसहारा घूम रहा अन्‍नदाता देश का ।
    भूपति श्रीहीन हो दास बनेअपनी जगह, अन्‍नपूर्णा सुफला धरा का अधिग्रहण अपनी जगह।।

    बनाया था ताजमहल गरीबों के खून से, मुहोब्‍बत की याद में ।
    व़ो विदेशी शहंशाह थे अपनी जगह, ये विदेशी लोकतंत्र भी अपनी जगह ।।

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