Sunday, December 13, 2009

हम भी बनेंगे मुख्यमंत्री! अब हर राजनेता जब प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बनना चाहता है तो हम क्यों न बनें? कहावत है, जिसकी लाठी उसकी भैंस। यह बहुत ही सार्थक कहावत है। आज के समयानुकूल। हर इंसान को नाम, शोहरत और पैसा चाहिए। जब कुछ खास के पास है तो हम आम लोगों के पास क्यों नहीं? राजनीति से अच्छा आजकल कोई धंधा भी नहीं कि जिसमें सब मिल जाता है। मित्रों! आइए, हम सभी मिलकर एक काम करते हैं- हर मोहल्ले को एक राज्य बनाकर मुख्यमंत्री बना दिया जाए और उस मोहल्ले के हर घर का मुख्य कर्ता विधान सभा का सदस्य। हर मोहल्ले में जो सरकारी जमीन पर पार्क हो, उसे हटाकर वहां विधान सभा का भवन बना दिया जाए। सभी मोहल्ला एक राज्य, जिसमें एक मुख्यमंत्री होगा, कई मंत्री। सभी विधान सभा के सदस्य। जैसे मर्जी, अपना-अपना राज्य चलाया जाए। कैसा लगा मेरा सुझाव? मेरी, आपकी और सबकी महत्वाकांक्षा पूरी हो जाएगी।

अंग्रेजों की चाल ‘फूट डालो-राज करो’ की नीति का परिणाम यह था कि देश दो टुकड़ों में बंटा। सिंहासन-लोभ और राजनीतिक महत्वाकांक्षा की वजह से महात्मा गांधी भी नेहरू और जिन्ना को रोक नहीं पाए थे और देश विभाजन हुआ, जिसकी पीड़ा आजतक हम सह रहे हैं। देश की आजादी के लिए महात्मा गांधी ने जिस अहिंसा और अनशन के द्वारा अंग्रेजों को कभी परास्त किया था, आज उनके ही अनुयायी इस ताकत को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं- अपने स्वार्थ के लिए। बापू की वर्षो की तपस्या और संघर्ष से प्राप्त आजाद भारत आज टुकड़ों-टुकड़ों में बंट रहा है। मन तो हर आदमी का बंट चुका है, मगर देश का आंतरिक भौगोलिक क्षेत्र भी सत्ता-लोभ से बंट रहा है। जाने अभी और कितने राज्य रूपी टुकड़ों में बंटेगा भारत! तेलंगाना राज्य का गठन होना मात्र एक राज्य के बंटने तक सीमित नहीं है। इसका गठन होना नौ और नए राज्यों के गठन के लिए रास्ता दिखा रहा है। साथ ही देश में आंदोलनों की एक नई श्रंखला शुरू होने जा रही है।

बिहार को दो टुकड़ों में बांटकर एक नया राज्य झारखंड बनाया गया था, अब बिहार के कुटिल राजनेता उत्तर बिहार को अलग कर नया राज्य मिथिलांचल की मांग कर रहे हैं। उसी तरह गोरखालैंड, पश्चिम बंगाल और दार्जिलिंग का हिस्सा, पूर्वाचल, पूर्वी उत्तर प्रदेश, ग्रेटर कूच बिहार, पश्चिम बंगाल और असम का हिस्सा, हरित प्रदेश, पश्चिम उत्तर प्रदेश, बुंदेलखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश का हिस्सा, कूर्ग, कर्नाटक, सौराष्ट्र, गुजरात, विदर्भ, महाराष्ट्र आदि अलग राज्य के लिए मांग कर रहे हैं। हमारे बुद्धिजीवी राजनीतिकों की राय है कि देश की तरक्की, विकास, सुधार और सुशासन के लिए राज्यों का छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटना जरूरी है। फिर तो ग्रामसभा, ग्रामपंचायत, नगरपालिका, नगरपंचायत, जो एक तरह की छोटी-छोटी विधानसभाएं ही हैं, इन सबका क्या औचित्य?

असली प्रजातंत्र तो यही है कि अब हर गांव, कस्बे, मोहल्ले को एक नया राज्य बना दिया जाए। भाषा के आधार पर अलग राज्य, परिधान के आधार पर अलग राज्य, भौगोलिक स्थिति के आधार पर अलग राज्य, संस्कृति के आधार पर अलग राज्य, हर सम्प्रदाय के आधार पर अलग राज्य, पुरुषों का एक अलग राज्य, स्त्रियों का एक अलग राज्य, हर पार्टी के वर्चस्व के आधार पर एक अलग राज्य, गरीबों का एक अलग राज्य, अमीरों का एक राज्य, दलितों का एक राज्य, जाति-उपजाति, गोत्र-पिंड-टोटम, देवी-देवता आदि-आदि के आधार पर भी बांट सकते हैं।


छोटे-छोटे राज्यों में बंटकर किसकी साध पूरी होगी? जाने राजनीतिकों की ये सत्ता की भूख देश को कहां लेकर जाएगी। देश की प्रगति के लिए राज्यों का अब और बंटवारा उचित नहीं, बल्कि देश की अखंडता को बनाए रखना जरूरी है। आज देश में गरीबी, अशिक्षा, भुखमरी, महंगाई, पानी, बिजली, प्राकृतिक आपदा, आतंकवाद, नक्सलवाद, क्षेत्रीयता, हिंसा, बलात्कार, भ्रष्टाचार इत्यादि ऐसे गम्भीर मसले हैं जिससे हर आम और खास नागरिक प्रभावित होता है। आज राजनीतिकों की सत्ता लोलुपता का ही अंजाम है कि देश के इतने टुकड़े हो चुके हैं। फिर भी वो संतुष्ट नहीं हैं, और राज्य का विभाजन नहीं बल्कि इंसानों के विभाजन में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। एक तरफ तो सम्पूर्ण दुनिया में वैश्वीकरण की बात होती है तो दूसरी तरफ देश के भीतर इतना ज्यादा विभाजन। किस-किस प्रकार से बांटते रहेंगे। देश के बाद राज्य के विभाजन में देश का सुंदर भविष्य देखने वाले इन देशभक्त नेताओं से किसकी तरक्की की उम्मीद करें। आश्चर्य है सत्ता पक्ष हो या विपक्ष कैसे किसी राज्य को बांटने के लिए तैयार है।

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