Saturday, December 26, 2009

उत्तर प्रदेश का अघोषित आपातकाल

माना की चुनाव जीतना महत्वपूर्ण है होता है और उत्तर प्रदेश में बसपा जो की आम जनता पर अपनी पकड़ तेजी से खोती जा रही है, जिसकी मुखिया मायामुर्ती सिर्फ पत्थर की देवी होती जा रही है, जिन्हे भूखी मरती जनता, खाद के लिए लाठिया खाते लोग, खेतो में गन्ना जलाते किसान और रोज लुटती दलित और गरीब औरतो की इज्ज़त नहीं दिखाई देती, जहा मायामुर्ती के प्यारे विधायक कोई पुलिस वाले का खून कर रहा है तो कोई अभियंता का , जहा इमानदार अधिकारी आत्महत्या कर रहे है, रोटी केलिए लोग बच्चे बेच रहे है...वो घमंडी महिला और उसके रक्त पिपासु सिपाह सालारो ने सरकारी अधिकारियो ,को भी वफादार कहे जाने वाले जानवर की नस्ल बना दी है...जहा धनञ्जय सिंह, ब्रिजेश सिंह मुख्तार अंसारी, अफजाल अंसारी, हरिशंकर तिवाज्री, गुड्डू पंडित और ऐसे ही कई माफिया और उनके रिश्तेदार चुनाव लड़ रहे है वही विरोधियो को डराने की ऐसी सस्ती चाले चलना क्या शोभा देता है...
मंत्री प्रधानो को फ़साने की धमकिया देता है...भूलिए मत मायामूर्ति जी सत्ता किसी की बपौती नहीं है और कल आप के साथ भी यही हो सकता है....कब कुर्सी नीचे से खिसक जाएगी और तारे दिख जायेंगे पता नहीं चलेगा...ये तानाशाही छोडिये और अगर विश्वास है तो नैतिक चुनाव लड़िये..

आज जिस तरह से उत्तर प्रदेश के विधान परिषद् चुनावो में , विधान सभा उपचुनावों की तरह लेखपाल से लेकर डीएम तक का खुला दुरुपयोग हो रहा है, जिस तरह से चुनाव हरने वाले जिलो से अधिकारियो का थोक के भाव ट्रान्सफर किया जा रहा है उससे अधिकारियो मीक तरह का डर व्याप्त हो गया है, हर तरफ एक निराशा , एक डर, एक आतंक का माहौल है, हर अधिकारी, हर जनप्रतिनिधि सर्कार और मायामुर्ती के पैसकमाने की हवास पूरी करने की मशीन बन चूका है मुझे नहीं पता की प्रदेश का भविष्य क्या होगा..जिस तरह सारी पार्टी के नेता बसपा के नेताओं और अधिकारियो के पद और सत्ता के दुरुपयोग, उनकी धमकियों से परेशां है उससे उम्मीद नहीं की प्रदेश में बीना केन्द्रीय दल के कोई चुनाव निष्पक्छ और निष्कलंक हो सकता है..जिस तरह भाजपा, कांग्रेस, सपा से लेकर अपना दल और इंजपा तक सर्कार से परेशां है उससे कही कही उत्तर प्रदेश में अघोषित तानाशाही लगी हुई है.

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