Sunday, January 3, 2010

आपसी तालमेल में छिपा है विकास का राज

झारखंड में चुनाव बाद लोकप्रिय सरकार का गठन हो गया है. करीब 11 माह का राष्ट्रपति शासन समाप्त हो चुका है. नयी सरकार के सामने कई अवसर और कई चुनौतियां हैं. विकास के कार्यो में पारदर्शिता लाते हुए इसका लाभ आम लोगों तक पहुंचाना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए. नयी सरकार की प्राथमिकताएं और क्या हो सकती हैं, इस पर हम एक श्रंखला प्रारंभ कर रहे हैं, जिसमें देश के प्रबुद्ध लोग अपने विचार रखेंगे. प्रस्तुत है इसकी पहली कड़ी.





किसी भी आम चुनाव के बाद जिस सरकार का गठन होता है, उससे देश-प्रदेश की जनता की बेहतरी की उम्मीद करना स्वाभाविक है. झारखंड में जिस तरह की परिस्थितियों के बीच वहां की जनता ने लोकतांत्रिक व्यवस्था में आस्था जताते हुए मतदान में भाग लिया, वह काबिले-तारीफ़ है. जहां तक नवगठित झारखंड सरकार की प्राथमिकता की बात है, तो सबसे पहले हमें प्रदेश की जनता द्वारा ङोली जा रही समस्याओं को ध्यान में रखना होगा.झारखंड के निर्माण के बाद से वहां भ्रष्टाचार ने ऊ पर से नीचे तक अपनी जड़ें बड़ी गहराई से जमायी हैं. गठन के बाद से ही भ्रष्टाचार के कई मामले उजागर हुए. इससे प्रदेश के बाहर भी झारखंड की छवि खराब हुई है. इस भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाना वहां की सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए, ताकि सुशासन की राह पर प्रदेश को बढ़ाया जा सके. लेकिन केवल कह देने मात्र से या घोषणा कर देने से भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होनेवाला. इसके लिए कठोर कदम उठाये जाने की जरूरत है. बिना राजनीतिक इच्छाशक्ित और जन-जागरूकता के यह संभव नहीं है. साथ ही साथ भ्रष्टाचार के जो भी मामले सामने आते हैं, उनमें त्वरित कार्रवाई की व्यवस्था कर ही हम लूट-खसोट की परंपरा को खत्म कर सकते हैं.



एक और महत्वपूर्ण बात है कि जो भी सरकारें वहां सत्ता में हैं, वह राजनीतिक रूप से भले ही एक-दूसरे की प्रतिद्वंद्वी हों, लेकिन प्रदेश के विकास के प्रश्न पर सभी को एकजुटता का प्रदर्शन करते हुए नीतियों का निर्माण करना चाहिए. तभी वहां विकास की गति को तेज किया जा सकता है. आज यह देखने में आता है कि सरकार और उसके सहयोगी व प्रमुख विपक्षी दल के राजनीतिक हित टकराने के कारण हम ऐसी पॉलिसी नहीं बना पाते, जिनमें प्रदेश के लोगों की भलाई छुपी हो. बेहतर नीतियों के अभाव में झारखंड जैसे संसाधन-संपन्न राज्य भी विकास के मामले में पिछड़ जाते हैं और सीमित अर्थो में विकास होता भी है, तो उसका लाभ कुछ खास लोगों तक सिमट कर रह जाता है. सरकार अगर नेक इरादों से विपक्ष को साथ लेकर सुशासन के रास्ते पर आगे बढ़े, तो निश्चित रूप से प्रदेश का विकास होगा. केवल इकट्ठे होकर सरकार बनाने से काम नहीं चलनेवाला, बल्कि साथ-साथ सरकार चलाने में प्रदेश की जनता की भलाई का राज छिपा हुआ है.विगत वर्षो में झारखंड में एक और प्रवृत्ति देखने को आयी है. बिजनेस घरानों की दावेदारी और उनके काम की जांच किये बिना सरकार द्वारा उनके पक्ष में व्यवसाय के लिए एमओयू यानी सहमति पत्र जारी किये जाते रहे हैं. इस प्रवृत्ति ने प्रदेश का बहुत ही नुकसान किया है. मेरा मानना है कि उद्योग व व्यवसाय के एमओयू हों, लेकिन इस प्रक्रिया में पूरी तरह से पारदर्शिता अपनायी जाये. कोई भी सरकार चाहे वह प्रदेश की हो या केंद्र की, अगर सुशासन लाना चाहती है, तो उसे व्यवस्था में पारदर्शिता अपनानी होगी. कोयले के खदानों या अन्य खनिज पदार्थो किसी भी बिजनेस घराने को दिये जाते हैं, तो उस प्रक्रिया को पूरी तरह से पारदर्शी बनाया जाना जरूरी है. साथ ही मॉनिटिरिंग के स्तर पर भी सुधार हो.नक्सलवाद की बात अक्सर की जाती है, लेकिन इसके मूल में जो बातें छुपी हुई है, उन्हें दरकिनार कर दिया जाता है. सरकार को गरीब तबके के कल्याण के लिए बिना किसी भेदभाव के कदम उठाने चाहिए. ऐसा कर सरकार सुशासन में उनकी आस्था जगा सकती है. अगर जनता के खिलाफ़ भेदभावपूर्ण नीति अपनायेंगे और उनके दुख-दर्द को दूर करने का समुचित प्रबंध नहीं करेंगे, तो व्यवस्था के विरुद्ध असंतोष फ़ैलना स्वाभाविक है. इस असंतोष को भुनाने के बजाय उनकी गरीबी दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिए.

सौजन्य-हरबंश जी

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