आपने कभी देखा है, कि जापानी समारोह में सभी चीनी बोलें और जापानी भाषा की हंसी उड़ाएं? या फ्रांस के समारोह में अंग्रेजी बोली जाए और फ्रांसीसी भाषा की खिल्ली उड़ाई जाए? दुनिया का कोई देश अपनी भाषा की उस तरह खिल्ली नहीं उड़ाता जिस तरह भारत के फिल्मोदद्योग से जुड़े व्यक्तियों द्वारा उड़ाया जाता है।
पिछले दिनों हुए “स्टार स्क्रीन अवार्ड” में कुछ ऎसा ही नजार देखा जो किसी भी भारतीय का सिर शरम से झुकाने के लिए काफी था, सिवाय “हिन्दी फिल्मों” से जुड़े लोगों का।
मंच पर साजिद खान “प्रोफेसर परिमल” बन कर शुद्ध हिन्दी बोल रहे थे और उनके साथ खड़ी अभिनेत्री उनकी हिन्दी को कोस रही थीं, अंग्रेजी में। और उनके साथ ठहाके लगा रहे थे दर्शक के रूप में बैठे “हिन्दी” अभिनेता और अभिनेत्रियां।
शर्म की इंतिहा तब हुई जब गायिका श्रेया घोषाल अपना पुरस्कार लेने मंच पर आईं और हिंदी में धन्यवाद-भाषण दोहराने के आग्रह पर ऎसी कठिनाई से, ऎसे अटक-अटक कर दो पंक्तियां हिंदी में बोल गईं जैसे शुद्ध अंग्रेजों की औलाद हैं और हिंदी बोल कर भारतीयों पर एहसान कर रही हैं।
बचपन में राष्ट्रभक्ति की एक कविता पढ़ी थी कि जिसे अपने देश और राष्ट्रीयता पर अभिमान नहीं, वह इंसान नहीं, नर- पशु समान है।
उस फिल्म समारोह में ऎसे ही नरपशु भरे पड़े थे। न पढ़े, न लिखे, दिखावे की ज़िंदगी जीने वाले ये नर-पशु अन्य देशवासियों से अपनी कमतरी छिपाने के लिए विदेशी भाषा का आश्रय लेते हैं।
जरा कस कर एक जूता इनके सिर पर मारें तो चिल्ला पड़ेंगे अपनी मातृभाषा में।
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