Thursday, February 11, 2010

अपराध या सिस्टम के खिलाफ जंग!

उत्सव का आक्रोश देखकर लगा कि उत्सव में चेतना अभी मरी नहीं है। रही बात उत्सव के आक्रोशित होने की तो, ये सहजवृत्ति है। नारी शक्ति द्रौपदी के अपमान की ही तो बात थी। एक रजस्वला स्त्री जिसे दु:शासन ने वस्त्रहीन करके दुर्योधन की जांघ पर बिठाने का प्रयास मात्र किया और इतना बड़ा युद्ध महाभारत हो गया। जिसमें लाखों योद्धाओं का खून बह गया। आज सैकड़ों बालाएं रोज लूटी जाती हैं, लेकिन शक्ति पुत्रों में से किसी एक का भी खून नहीं खौलता। जैसे उसके रक्त का शीत ज्वर हो गया या उनकी चैतन्यता को काठ मार गया। क्या स्त्री शक्ति इसी तरह लूटी जाएगी और हम उसमें सहभागी बनेंगे? अथवा देखते रहेंगे? हो क्या गया है हमारे एहसासों को। कहां गया हमारा ईश्वरीय भाव। मेरी तो सोच यह है कि राष्ट्र को नारी शक्ति की महत्ता समझनी होगी। यह चेतना जब उत्सव जैसे युवाओं के अ‌र्न्त:मन को झकझोरती है तब राठौड़ जैसे लोगों के साथ तो इससे भी बुरा होना चाहिए।

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