मंहगाई समेत कई मुद्दों पर संसद मे लाया जाने वाला कट ऑफ मोशन देश की राजनीति और राजनीतिकि दलों के चेहरो को बेनक़ाब करने का सबसे बेहतरीन सबूत बन कर रह गया है। अपनी परेशानियों और सत्ता पक्ष की मनामानी का विरोध करने के लिए जनता विपक्ष से ही आस लगाती है। लेकिन हर बार की तरह इस बार भी साफ हो गया है कि भ्रष्टाचार हो या मंहगाई हर मामले में सभी राजनीतिक दल एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं।
सियासी पंडितो की राय में मधु कोड़ा हो या चारा घोटाला, पडित सुखराम हो या बोफोर्स, घोटाले सामने तो आए लेकिन उनके नतीजे दबा दिये जाते हैं। बल्कि कुछ लोगो का तो यहां तक कहना है कि एक दूसरे के घोटालों और जाच ऐंजेसियों के दम पर सभी राजनीतिक दल एक दूसरे से समझौते से लेकर ब्लैक मेंलिग तक का खेल खेलते हैं। इसका सबूत एक बार फिर दिल्ली और लखनऊ के बीच खेली गई सियासी नूरा कुश्ती को देखने से मिला। बिन हवा के गुब्बारे की तरह हो चुके विपक्ष ने सरकार को संसद में घेरने के लिए गुब्बारे में हवा भी भरी और तैयारी भी ज़ोर शोर से की तो थी। मगर लखनऊ में माया मेम साब ने पूरे विपक्ष के गुब्बारे में इतने छेद कर दिये कि गिनती भी मुश्किल हो गई।
माया मेम साब ने सरकार के विरोध से इंकार कर दिया। हो सकता है कि मैडम सरकार गिराने या दोबारा चुनाव को देश हित में ठीक ना मानती हो। और ये भी हो सकता है कि मुद्दे को मुलायम और लालू के अलावा बीजेपी की झोली में ना जाने देने की नीयत से माया मेम साब ने सरकार को अभयदान देने की ठान ली हो।
लेकिन इस सबके बीच ये चर्चाएं बहुत ही अहम हैं कि केद्र की काग्रेस सरकार ने मैडम के खिलाफ सीबीआई को एक बार फिर टूल की तरह इस्तेमाल किया है। यानि आय से अधिक सम्पत्ति मामले के अलावा कुछ और घोटालों के मामलों में काग्रेस ने माया मेम साब को मदद करने का गुपचुप समझौता कर लिया है। इतना ही नहीं चर्चा तो ये भी है कि इन सभी मामलों को दबाने के अलावा उनके खिलाफ अपील तक ना करने का वादा काग्रेस ने मेम साब से कर लिया है।
देश और जनता के साथ इससे ज़्यादा शर्मनाक मज़ाक़ हो ही नही सकता।
भले ही मायावती के हर क़दम का विरोध करके उत्तर प्रदेश की जनता के लिए घड़ियाली आंसू बहाने वाले राहुल के बारे मे राजनीतिक हल्कों में कहा जा रहा है कि ज़मीन से तीन फुट ऊपर चलने से बदलाव नामुमकिन है। साथ ही राज्य की दुर्दशा के लिए केंद्र को कोसने वाली माया मेम साब भी जनता के साथ क्या कर रही हैं अब के सामने आ चुका है।
पिछले 63 साल से देश के साथ काग्रेस क्या कर रही है इसकी बानगी भर है ये ताज़ा मामला। लोगों का आरोप है कि सत्ता के लालच में काग्रेस किसी भी हद तक जा सकती है। देश के लिये सबसे खतरनाक दीमक बन चुके किसी भी भ्रष्टाचार को किसी भी रूप में पनाह दने के आरोपो के बीच काग्रेस जनता की जवाबदही से कैसे बचेगी ये उसके मैनेजर ही जाने।
लेकिन ये कहां तक उचित है कि बाबा साहब और काशीराम के मार्ग दर्शन से मान सम्मान की लड़ाई लड़ रहे कमज़ोर तबक़े के नाम पर बनी सरकार के नुमाइंदे अपने स्वार्थों के लिए उसी काग्रेस के सामने घुटने टेक दें जिसका विरोध ही उसकी राजनीति का सबसे बड़ा मुद्दा रहा हो। और फिर मुलायम लालू शरद और आड़वाणी समेत सभी नेताओं के चरत्रि को देख कर यही लगता है कि जनता जाए भाड़ में सत्ता और स्वार्थों के लिए हर समझौता जायज है.
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