मालामुर्ती क्षमा कीजियेगा मायावती ‘दलित की बेटी’ होने के विशेषण का इजहार करते हुए अपने विरोधियों को सियासत के मैदान में चुनौती देती हैं और विरोधी जवाब में उन्हें ‘दौलत की बेटी’ के विशेषण से नवाजा करते हैं। दोनों ही विशेषण अपनी जगह सौ फीसदी सही हैं। मायावती जन्मना दलित की बेटी हैं और कर्मणा वह दौलत की बेटी बन चुकी हैं।
बेचारी उत्तर प्रदेश की जनता चाहे तो उन्हें ‘दौलत की देवी’ कह ले! बसपा की मुखिया मायावती ने मुख्यमंत्री की हैसियत से प्रदेश वासियों की झोली में चाहे कुछ दिया हो या न दिया हो, लेकिन इतना तो बड़े भरोसे से कहा जा सकता है कि सूखा और बाढ़ की चक्की में पिसते प्रदेश की गरीब जनता ने उन्हें करोड़पति बना दिया है। वह भी कोई छोटा-मोटा करोड़पति नहीं, ऐसा करोड़पति जो तेजी से अरबपति होने की राह पर चल रहा है।
महज तीन बरस में उनकी सम्पत्ति में 34 करोड़ का इजाफा हुआ है। उत्तर प्रदेश की विधान परिषद के लिए द्विवार्षिक चुनाव का नामांकन करते हुए दलित की बेटी मायावती ने अपनी सम्पत्ति का जो ब्यौरा दिया है, उसके मुताबिक उनकी दौलत पिछले तीन सालों में 52 करोड़ रुपए से बढ़कर 87 करोड़ रुपए हो गई है। इसका मतलब यह हुआ कि उनकी हर महीने की औसत आमदनी लगभग तीन करोड़ रुपए के बराबर रही। अपने आप में यह कम दिलचस्प नहीं है कि इन बरसों में जब समूची दुनिया समेत अपने देश की अर्थव्यवस्था भी घनघोर मंदी के भंवर में ऊभचूभ कर रही थी और बड़े-बड़े उमियों के पसीने छूट रहे थे, तब भी मायावती की दौलत का ग्राफ उत्तरोत्तर ऊंचाई की सीढ़ियां चढ़ता रहा।
इसका एक अर्थ तो यही हुआ कि जनता की सेवा और प्रदेश के निर्माण का जो पारिश्रमिक है, उस पर आर्थिक मंदी और सूखा-बाढ़ जैसे प्राकृतिक प्रकोप का कोई असर नहीं पड़ता!। खैर ये तो वो संपत्ति है जिसको दिखाया गया है , इसके अलावा घोड़ी बछेड़ा की जमीन जिसके लिए 4 किसानो की जान ले ली इस ड्राकुला सरकार ने , बादलपुर की वो अरबो की लागत से बन रही कोठी जिसकी वजह से एक देशभक्त शहीद को घर से बेदखल करने में सारा प्रशाशनिक अमला लगा हुआ है, लखनऊ में जिस जमीन के लिए एक जज के परिवार को मानसिक प्रताड़ना दी जा रही है,विभिन्न जिलो में बसपा नेताओं द्वारा बनाई जा रही बेनामी संपत्तियां और सबसे बड़ी वो करोडो की माला जिसने मायावती को मालामुर्ती बना दिया उसका जिक्र नही है, वरना बात अरबो तक पहुचती.
बहरहाल, वैभव के इस विवरण के सामने दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की कुल 50 लाख डॉलर की सम्पत्ति को रखकर देखें तो लगेगा कि अमीरी के मामले में वे उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के आगे कहीं नहीं ठहरते।
क्या इसका एक अर्थ यह नहीं निकलता कि अमेरिका की तरह जिन देशों के शासनाध्यक्षों की सम्पत्ति संतुलित व सामान्य है, वे देश तो विकास करते हैं, मगर जिस देश के प्रदेशों के मायावती, जयललिता और मधु कोड़ा सरीखे तेजी से अमीर होने वाले चरित्र हीन, धनलोलुप, रक्तपिपासु और मानवता के ऊपर कलंक मुख्यमंत्री हुआ करते हैं, वहां उत्तर प्रदेश-तमिलनाडु-झारखंड जैसे विकास के मोहताज, दर-दर की ठोकर खानेवाले राज्य दिखाई देते हैं। सवाल यह भी है कि किसी शासनाध्यक्ष को उसकी निजी अमीरी के आधार पर उमी-पराक्रमी माना जाए या फिर उसके शासन काल में दुर्गति की दशा भोगते प्रदेश के आईने में उसे फिसड्डी और दरिद्र कहा जाए! ये वही नेता या फिर नेता के नाम पर ...... है जिसने , आपको याद ही होगा कि कुछ महीने पहले जिसके पास दांतेवाडा के शहीदों को देने के लिए पैसे नहीं थे कृपालु महाराज के भंडारे में मामूली खैरात पाने की भगदड़ में मरे लोगों को मुआवजा देने के लिए पैसे न होने की बात मुख्यमंत्री ने वैसे ही सार्वजनिक की थी, जैसे अब अपनी सम्पत्ति की घोषणा की है।
Friday, May 28, 2010
Friday, May 21, 2010
Thursday, May 13, 2010
माया के 3 साल
अाज से तीन साल पहले सारे अनुमानों, आंकड़ों और विश्लेषणों को बलाए ताक कर सवर्जन के एजेंडे को लेकर बसपा ने जिस चमक-दमक के साथ सरकार बनाई, उससे लोगों की उम्मीदें थीं कि अब बहुजन से सर्वजन तक खुशहाली का सावन बरसेगा और विकास की फसल लहलहाएगी। लोगों को यह भी लगा कि यह सरकार पूर्ववर्ती सरकारों से भिन्न होगी। सरकार जब अपनी नीतियों, कार्यक्रमों, प्राथमिकताओं, नियोजनों पर चलने लगी तो नौकरशाहों, चापलूस प्रवृत्ति के लोगों की गिरफ्त में फंसती चली गई। समाज के दबे कुचले शोषित वंचित और उपेक्षित तथा समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति पर होठों पर मुस्कान लाने का संकल्प किताबी साबित हुआ। उसके दो वक्त की रोटी, स्वास्थ्य, सुरक्षा और शिक्षा पाने का मकसद आज भी एक ख्वाब से ज्यादा कुछ नहीं है।
ऐसे में किसी शायर की यह पंक्तियां प्रासंगिक लगती हैं -
"बहुत आगे बढ़े हैं काफिले वाले हकीकत है,
मगर मंजिल की जो दूरी पहले थी सो अब भी है"
पुष्टि होने लगी कि इस सरकार का लक्ष्य मात्र राजधानी लखनऊ को पत्थरों की मूर्तियों से पाट देना और विरोधी दलों के प्रति प्रतिशोध से काम करना तथा रोज-रोज अधिकारियों के तबादलों, दूसरे दलों के अपराधी और अराजक तत्वों को बसपा में शामिल करना भर रह गया है। उस पर बसपा का मासूमियत भरा हास्यास्पद यह बयान कि विपक्षी दलों ने आपराधिक तत्वों को बसपा में भेज दिया। सवाल यह उठता है कि क्या बसपा नेतृत्व सत्ता पाने के बाद इतना नादान हो गया कि उसका विवेक अच्छे और बुरे की पहचान करने तक की क्षमता खो बैठा।
राजनीतिक क्षेत्रों में प्रशासनिक निरंकुशता और भ्रष्टाचार बढ़ते अपराध का सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है।बल्कि एक ओर बढ़ती महंगाई, चोरबाजारी खा पदार्थो में मिलावट, दूसरी ओर बसपा नेतृत्व करोड़ों रुपयों का हार पहनकर मीडिया में अपनी तस्वीरे छपवाए। यह कृत्य आम जीवनोपयोगी चीजों को तरसती जनता के घावों पर नमक छिड़कने जैसा रहा है। पानी, बिजली, स्वास्थ्य और किसानों, मजदूरों व अन्य वर्गो की समस्याओं से जूझती जनता से बेपरवाह मायावती सरकार केन्द्र सरकार से बात-बात पर रार ठान रही है। अपनी छवि बचाने के लिए विरोधी दलों पर अनर्गल प्रलाप कर रही है। दलित शोषित उपेक्षित भी हैरान हैं कि इस सरकार में उन्हें मिला क्या? वे तो जहां के तहां, बल्कि और पीछे धकिया दिए गए। बसपा कांग्रेस की देखादेखी दलित प्रेम का ढोंग दिखा रही है मगर उनके विकास उत्थान के लिए कुछ नहीं कर रही है। उसकी स्थिति तो अब यही है कि -
‘परछाइयों के शहर में तन्हाइयां न पूछ
अपने शरीके गम में कोई अपने सिवा न था’
सवाल यह उठ रहे हैं कि किस बिना पर इस सरकार को सफल सरकार माना जाए। जहां बात-बात पर आम आदमी को इंसाफ के लिए सरकार के बजाए जनहित याचिकाओं के जरिए न्यायालय की शरण में जाना पड़े। सरकार असंवेदनशीलता से चल रही है फिर भी सरकार का दावा कि सर्वजन की सरकार जनहित में कार्य कर रही है। उसका यह दावा थोथा एवं बड़बोलापन नहीं तो और क्या है।
कांग्रेस हो या भाजपा यह सब अपना मुंह बड़ी बेबाकी से तभी खोलते हैं जब उनके कार्यकर्ता पर कोई सरकारी दबाव आता है। आज उत्तर प्रदेश में सपा को छोड़कर विपक्ष में ऐसा कोई दल नहीं है जो अपने बल पर 2012 में सरकार बनाने का दावा कर सके। बसपा सरकार की यही सफलता मानी जा रही है और निरंकुशता और मनमानी की वजह भी यही है। यह विडम्बना ही मानी जाएगी कि वर्तमान सरकार ने कई बार राज्यपाल तक से टकराने की कोशिश की है और जहां भी उसने अपना कोई अहित होने का खतरा देखा वहीं उसने तुरंत केंद्र सरकार की हां में हां मिलाने में देर नहीं की। इसमें कोई दो राय नहीं कि जैसी बसपा की कार्यशैली है उसमें वह सबसे बड़ा खतरा सिर्फ उत्तर में सपा से महसूस कर रही है।
ऐसे में किसी शायर की यह पंक्तियां प्रासंगिक लगती हैं -
"बहुत आगे बढ़े हैं काफिले वाले हकीकत है,
मगर मंजिल की जो दूरी पहले थी सो अब भी है"
पुष्टि होने लगी कि इस सरकार का लक्ष्य मात्र राजधानी लखनऊ को पत्थरों की मूर्तियों से पाट देना और विरोधी दलों के प्रति प्रतिशोध से काम करना तथा रोज-रोज अधिकारियों के तबादलों, दूसरे दलों के अपराधी और अराजक तत्वों को बसपा में शामिल करना भर रह गया है। उस पर बसपा का मासूमियत भरा हास्यास्पद यह बयान कि विपक्षी दलों ने आपराधिक तत्वों को बसपा में भेज दिया। सवाल यह उठता है कि क्या बसपा नेतृत्व सत्ता पाने के बाद इतना नादान हो गया कि उसका विवेक अच्छे और बुरे की पहचान करने तक की क्षमता खो बैठा।
राजनीतिक क्षेत्रों में प्रशासनिक निरंकुशता और भ्रष्टाचार बढ़ते अपराध का सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है।बल्कि एक ओर बढ़ती महंगाई, चोरबाजारी खा पदार्थो में मिलावट, दूसरी ओर बसपा नेतृत्व करोड़ों रुपयों का हार पहनकर मीडिया में अपनी तस्वीरे छपवाए। यह कृत्य आम जीवनोपयोगी चीजों को तरसती जनता के घावों पर नमक छिड़कने जैसा रहा है। पानी, बिजली, स्वास्थ्य और किसानों, मजदूरों व अन्य वर्गो की समस्याओं से जूझती जनता से बेपरवाह मायावती सरकार केन्द्र सरकार से बात-बात पर रार ठान रही है। अपनी छवि बचाने के लिए विरोधी दलों पर अनर्गल प्रलाप कर रही है। दलित शोषित उपेक्षित भी हैरान हैं कि इस सरकार में उन्हें मिला क्या? वे तो जहां के तहां, बल्कि और पीछे धकिया दिए गए। बसपा कांग्रेस की देखादेखी दलित प्रेम का ढोंग दिखा रही है मगर उनके विकास उत्थान के लिए कुछ नहीं कर रही है। उसकी स्थिति तो अब यही है कि -
‘परछाइयों के शहर में तन्हाइयां न पूछ
अपने शरीके गम में कोई अपने सिवा न था’
सवाल यह उठ रहे हैं कि किस बिना पर इस सरकार को सफल सरकार माना जाए। जहां बात-बात पर आम आदमी को इंसाफ के लिए सरकार के बजाए जनहित याचिकाओं के जरिए न्यायालय की शरण में जाना पड़े। सरकार असंवेदनशीलता से चल रही है फिर भी सरकार का दावा कि सर्वजन की सरकार जनहित में कार्य कर रही है। उसका यह दावा थोथा एवं बड़बोलापन नहीं तो और क्या है।
कांग्रेस हो या भाजपा यह सब अपना मुंह बड़ी बेबाकी से तभी खोलते हैं जब उनके कार्यकर्ता पर कोई सरकारी दबाव आता है। आज उत्तर प्रदेश में सपा को छोड़कर विपक्ष में ऐसा कोई दल नहीं है जो अपने बल पर 2012 में सरकार बनाने का दावा कर सके। बसपा सरकार की यही सफलता मानी जा रही है और निरंकुशता और मनमानी की वजह भी यही है। यह विडम्बना ही मानी जाएगी कि वर्तमान सरकार ने कई बार राज्यपाल तक से टकराने की कोशिश की है और जहां भी उसने अपना कोई अहित होने का खतरा देखा वहीं उसने तुरंत केंद्र सरकार की हां में हां मिलाने में देर नहीं की। इसमें कोई दो राय नहीं कि जैसी बसपा की कार्यशैली है उसमें वह सबसे बड़ा खतरा सिर्फ उत्तर में सपा से महसूस कर रही है।
Tuesday, May 11, 2010
मूर्तियों के बाद मायावती को चाहिए एक हेवली
मायावती का मूर्ति प्रेम तो जगजाहिर है ही बहन जी महलों की भी शौकीन हैं॥अपने महल की खातिर मायावती दूसरे के घरों पर भी कब्जा करने से गुरेज नहीं कर रहीं हैं। ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि हालात कुछ यही बयां कर रहे हैं | बादलपुर में जज की कोठी का मामल अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि बहन जी के सर एक और इल्जाम लग गया है। कहने वाले तो यही कह रहे हैं कि लखनऊ में एक पूर्व जज की कोठी पर बहन जी की तिरछी नजर है॥तभी तो रात के अंधेरे में एलडीए के गार्ड इस कोठी में कूद गए और जबरन अपना तंबू गाड़ने दरअसल ये कोठी जस्टिस नियामतुल्लाह ने बनवाई थी॥जस्टिस नियामतुल्लाह वहीं है॥जिन्हें पाकिस्तान बनने के बाद वहां के अटार्नी जनरल बनने का ऑफर मिला था।लेकिन उन्होंने हिंदुस्तान से बेंइंतहा मोहब्बत होने की खातिर जिन्ना से मिले इस ऑफर को ठुकरा दिया और इस कोठी में बाकी की जिंदगी गुजारना पंसद किया॥परिवार को वही यादें इस कोठी से जुडी है।
बात साफ है कि राजधानी के पॉश मॉल एवेन्यू इलाके में इस कोठी के ठीक बगल में मायावती का घर है और सामने बहुजन समाज पार्टी का दफ्तर अब ज्यादा क्या समझाना जहां मायावती का घर और दफ्तर हो वहां किसी और की कोठी भला कैसे रह सकती है॥लेकिन अपनी पुश्तैनी कोठी को बचाने की खातिर अब्दुल्लाह परिवार की पत्रकार बहु मैदान में डटी है
परिवार वालों का आरोप है कि राज्य में कई सरकारें आई और गई॥ लेकिन हालात ऐसे नहीं थे॥ बहन जी के राज में जीना मुश्किल हो गया है॥जिस पर लोगों की हिफाजत का जिम्मा है॥जब वहीं लोगों के सिर का छत छीनने लगे तो ऐसे में आम आदमी किससे फरियाद करे!
रात के अंधेरे में लखनऊ डेवलपमेंट ऑथारटी ने चोरों की तरह॥ सुरक्षाकर्मियों को जस्टिस नियामतुल्ला की कोठी पर कब्जा करने की खातिर भेजा॥लेकिन पुलिस के मौके पर पहुचंने के बावजूद इस गैर-जिम्मेदाराना कार्रवाई के लिए एलडीए के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है
एलडीए के वही सुरक्षाकर्मी हैं॥ जो देर रात मॉल एवेन्यू में रिटायर जज नियामतुल्लाह की कोठी में दीवार कूदकर दाखिल हो गए थे हलांकि मीडिया और पुलिस के मौके पर पहुंचने के बाद ये सभी वहां से निकल भागे॥ लेकिन मीडिया और पुलिस के जाते ही ये सुरक्षाककर्मी फिर से कोठी में घुस गए मगर मीडिया वालों के पहुंच जाने से जब इनकी जान पर बन आई तो अब ये एलडीए के वीसी यानी उपाध्यक्ष मुकेश मेश्राम का नाम लेने से भी नहीं हिचकिचा रहे थे।
बात साफ है कि राजधानी के पॉश मॉल एवेन्यू इलाके में इस कोठी के ठीक बगल में मायावती का घर है और सामने बहुजन समाज पार्टी का दफ्तर अब ज्यादा क्या समझाना जहां मायावती का घर और दफ्तर हो वहां किसी और की कोठी भला कैसे रह सकती है॥लेकिन अपनी पुश्तैनी कोठी को बचाने की खातिर अब्दुल्लाह परिवार की पत्रकार बहु मैदान में डटी है
परिवार वालों का आरोप है कि राज्य में कई सरकारें आई और गई॥ लेकिन हालात ऐसे नहीं थे॥ बहन जी के राज में जीना मुश्किल हो गया है॥जिस पर लोगों की हिफाजत का जिम्मा है॥जब वहीं लोगों के सिर का छत छीनने लगे तो ऐसे में आम आदमी किससे फरियाद करे!
रात के अंधेरे में लखनऊ डेवलपमेंट ऑथारटी ने चोरों की तरह॥ सुरक्षाकर्मियों को जस्टिस नियामतुल्ला की कोठी पर कब्जा करने की खातिर भेजा॥लेकिन पुलिस के मौके पर पहुचंने के बावजूद इस गैर-जिम्मेदाराना कार्रवाई के लिए एलडीए के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है
एलडीए के वही सुरक्षाकर्मी हैं॥ जो देर रात मॉल एवेन्यू में रिटायर जज नियामतुल्लाह की कोठी में दीवार कूदकर दाखिल हो गए थे हलांकि मीडिया और पुलिस के मौके पर पहुंचने के बाद ये सभी वहां से निकल भागे॥ लेकिन मीडिया और पुलिस के जाते ही ये सुरक्षाककर्मी फिर से कोठी में घुस गए मगर मीडिया वालों के पहुंच जाने से जब इनकी जान पर बन आई तो अब ये एलडीए के वीसी यानी उपाध्यक्ष मुकेश मेश्राम का नाम लेने से भी नहीं हिचकिचा रहे थे।
Tuesday, May 4, 2010
राजनीति की नूरा कुश्ती में जनता को पटखनी
मंहगाई समेत कई मुद्दों पर संसद मे लाया जाने वाला कट ऑफ मोशन देश की राजनीति और राजनीतिकि दलों के चेहरो को बेनक़ाब करने का सबसे बेहतरीन सबूत बन कर रह गया है। अपनी परेशानियों और सत्ता पक्ष की मनामानी का विरोध करने के लिए जनता विपक्ष से ही आस लगाती है। लेकिन हर बार की तरह इस बार भी साफ हो गया है कि भ्रष्टाचार हो या मंहगाई हर मामले में सभी राजनीतिक दल एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं।
सियासी पंडितो की राय में मधु कोड़ा हो या चारा घोटाला, पडित सुखराम हो या बोफोर्स, घोटाले सामने तो आए लेकिन उनके नतीजे दबा दिये जाते हैं। बल्कि कुछ लोगो का तो यहां तक कहना है कि एक दूसरे के घोटालों और जाच ऐंजेसियों के दम पर सभी राजनीतिक दल एक दूसरे से समझौते से लेकर ब्लैक मेंलिग तक का खेल खेलते हैं। इसका सबूत एक बार फिर दिल्ली और लखनऊ के बीच खेली गई सियासी नूरा कुश्ती को देखने से मिला। बिन हवा के गुब्बारे की तरह हो चुके विपक्ष ने सरकार को संसद में घेरने के लिए गुब्बारे में हवा भी भरी और तैयारी भी ज़ोर शोर से की तो थी। मगर लखनऊ में माया मेम साब ने पूरे विपक्ष के गुब्बारे में इतने छेद कर दिये कि गिनती भी मुश्किल हो गई।
माया मेम साब ने सरकार के विरोध से इंकार कर दिया। हो सकता है कि मैडम सरकार गिराने या दोबारा चुनाव को देश हित में ठीक ना मानती हो। और ये भी हो सकता है कि मुद्दे को मुलायम और लालू के अलावा बीजेपी की झोली में ना जाने देने की नीयत से माया मेम साब ने सरकार को अभयदान देने की ठान ली हो।
लेकिन इस सबके बीच ये चर्चाएं बहुत ही अहम हैं कि केद्र की काग्रेस सरकार ने मैडम के खिलाफ सीबीआई को एक बार फिर टूल की तरह इस्तेमाल किया है। यानि आय से अधिक सम्पत्ति मामले के अलावा कुछ और घोटालों के मामलों में काग्रेस ने माया मेम साब को मदद करने का गुपचुप समझौता कर लिया है। इतना ही नहीं चर्चा तो ये भी है कि इन सभी मामलों को दबाने के अलावा उनके खिलाफ अपील तक ना करने का वादा काग्रेस ने मेम साब से कर लिया है।
देश और जनता के साथ इससे ज़्यादा शर्मनाक मज़ाक़ हो ही नही सकता।
भले ही मायावती के हर क़दम का विरोध करके उत्तर प्रदेश की जनता के लिए घड़ियाली आंसू बहाने वाले राहुल के बारे मे राजनीतिक हल्कों में कहा जा रहा है कि ज़मीन से तीन फुट ऊपर चलने से बदलाव नामुमकिन है। साथ ही राज्य की दुर्दशा के लिए केंद्र को कोसने वाली माया मेम साब भी जनता के साथ क्या कर रही हैं अब के सामने आ चुका है।
पिछले 63 साल से देश के साथ काग्रेस क्या कर रही है इसकी बानगी भर है ये ताज़ा मामला। लोगों का आरोप है कि सत्ता के लालच में काग्रेस किसी भी हद तक जा सकती है। देश के लिये सबसे खतरनाक दीमक बन चुके किसी भी भ्रष्टाचार को किसी भी रूप में पनाह दने के आरोपो के बीच काग्रेस जनता की जवाबदही से कैसे बचेगी ये उसके मैनेजर ही जाने।
लेकिन ये कहां तक उचित है कि बाबा साहब और काशीराम के मार्ग दर्शन से मान सम्मान की लड़ाई लड़ रहे कमज़ोर तबक़े के नाम पर बनी सरकार के नुमाइंदे अपने स्वार्थों के लिए उसी काग्रेस के सामने घुटने टेक दें जिसका विरोध ही उसकी राजनीति का सबसे बड़ा मुद्दा रहा हो। और फिर मुलायम लालू शरद और आड़वाणी समेत सभी नेताओं के चरत्रि को देख कर यही लगता है कि जनता जाए भाड़ में सत्ता और स्वार्थों के लिए हर समझौता जायज है.
सियासी पंडितो की राय में मधु कोड़ा हो या चारा घोटाला, पडित सुखराम हो या बोफोर्स, घोटाले सामने तो आए लेकिन उनके नतीजे दबा दिये जाते हैं। बल्कि कुछ लोगो का तो यहां तक कहना है कि एक दूसरे के घोटालों और जाच ऐंजेसियों के दम पर सभी राजनीतिक दल एक दूसरे से समझौते से लेकर ब्लैक मेंलिग तक का खेल खेलते हैं। इसका सबूत एक बार फिर दिल्ली और लखनऊ के बीच खेली गई सियासी नूरा कुश्ती को देखने से मिला। बिन हवा के गुब्बारे की तरह हो चुके विपक्ष ने सरकार को संसद में घेरने के लिए गुब्बारे में हवा भी भरी और तैयारी भी ज़ोर शोर से की तो थी। मगर लखनऊ में माया मेम साब ने पूरे विपक्ष के गुब्बारे में इतने छेद कर दिये कि गिनती भी मुश्किल हो गई।
माया मेम साब ने सरकार के विरोध से इंकार कर दिया। हो सकता है कि मैडम सरकार गिराने या दोबारा चुनाव को देश हित में ठीक ना मानती हो। और ये भी हो सकता है कि मुद्दे को मुलायम और लालू के अलावा बीजेपी की झोली में ना जाने देने की नीयत से माया मेम साब ने सरकार को अभयदान देने की ठान ली हो।
लेकिन इस सबके बीच ये चर्चाएं बहुत ही अहम हैं कि केद्र की काग्रेस सरकार ने मैडम के खिलाफ सीबीआई को एक बार फिर टूल की तरह इस्तेमाल किया है। यानि आय से अधिक सम्पत्ति मामले के अलावा कुछ और घोटालों के मामलों में काग्रेस ने माया मेम साब को मदद करने का गुपचुप समझौता कर लिया है। इतना ही नहीं चर्चा तो ये भी है कि इन सभी मामलों को दबाने के अलावा उनके खिलाफ अपील तक ना करने का वादा काग्रेस ने मेम साब से कर लिया है।
देश और जनता के साथ इससे ज़्यादा शर्मनाक मज़ाक़ हो ही नही सकता।
भले ही मायावती के हर क़दम का विरोध करके उत्तर प्रदेश की जनता के लिए घड़ियाली आंसू बहाने वाले राहुल के बारे मे राजनीतिक हल्कों में कहा जा रहा है कि ज़मीन से तीन फुट ऊपर चलने से बदलाव नामुमकिन है। साथ ही राज्य की दुर्दशा के लिए केंद्र को कोसने वाली माया मेम साब भी जनता के साथ क्या कर रही हैं अब के सामने आ चुका है।
पिछले 63 साल से देश के साथ काग्रेस क्या कर रही है इसकी बानगी भर है ये ताज़ा मामला। लोगों का आरोप है कि सत्ता के लालच में काग्रेस किसी भी हद तक जा सकती है। देश के लिये सबसे खतरनाक दीमक बन चुके किसी भी भ्रष्टाचार को किसी भी रूप में पनाह दने के आरोपो के बीच काग्रेस जनता की जवाबदही से कैसे बचेगी ये उसके मैनेजर ही जाने।
लेकिन ये कहां तक उचित है कि बाबा साहब और काशीराम के मार्ग दर्शन से मान सम्मान की लड़ाई लड़ रहे कमज़ोर तबक़े के नाम पर बनी सरकार के नुमाइंदे अपने स्वार्थों के लिए उसी काग्रेस के सामने घुटने टेक दें जिसका विरोध ही उसकी राजनीति का सबसे बड़ा मुद्दा रहा हो। और फिर मुलायम लालू शरद और आड़वाणी समेत सभी नेताओं के चरत्रि को देख कर यही लगता है कि जनता जाए भाड़ में सत्ता और स्वार्थों के लिए हर समझौता जायज है.
Saturday, May 1, 2010
सीबीआई और महंगाई।
केंद्र की काग्रेसी सरकार के पास दो बड़े अचूक हथियार हैं। एक का नाम है सीबीआई और दूसरा है महंगाई। वह सीबीआई के जरिए विरोधियों को समर्थक बनाती है और महंगाई के जरिए समर्थक उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाती है। काग्रेस, महंगाई और सीबीआई तीनों सगी बहने हैं।
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