Saturday, November 28, 2009

झारखंड विशेष ...


आज नौ वषाब बाद जहां झारखंड खड़ा है, वहां दो ही रास्ते हैं. सुधरने का या तबाह होने का. संयोग से चुनाव होनेवाले हैं. जो सुधार चाहते हैं, उनके लिए चुनाव एक अवसर है. चुनाव द्वार से ही सुधरने की पगडंडी गुजरती है. यह चुनाव झारखंड के लिए निर्णायक है, क्योंकि इस चुनाव के गर्भ से ही उस राजनीतिक संतान के जन्म की प्रतीक्षा है, जो झारखंड की बेड़ियों को काटेगा. इसके लिए जो भी सरकार बने, उसे कठोर निर्णय लेने होंगे. कई मोरचों पर. विधानसभा को हल ढ़ंढ़ना होगा. उन चुनौतियों-सवालों का जो झारखंड की बेड़ी-जंजीर बन चुके हैं. लगभग खत्म गवर्नेंस, बेकाबू भ्रष्टाचार और सरकार की उपस्थिति न होना, वे सवाल हैं, जिन्हें दसवें वर्ष में नयी सरकार और विधानसभा को ढ़ंढ़ने होंगे. अन्य जिम्मेवार संस्थाओं को भी.

अगर अतीत का राग बजा, तो फ़िर वही दलबदल, रोज सरकारों का आना-जाना, फ़िर भ्रष्टाचार का अनियंत्रित हो जाना. फ़िर झारखंड को तबाह होने से बचा पाना नामुमकिन है. नक्सली तब सबसे प्रभावी होंगे. अराजकता होगी. अव्यवस्था होगी.

इसलिए इस बार 15 नवंबर भिन्न पृष्ठभूमि में आया है. स्थितियां - हालात भिन्न हैं. चुनौतियां विषम हैं. हर मोरचों पर. राजनीतिक, प्रशासनिक, सामाजिक, ओर्थक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में.

यह हल ढ़ंढ़ेगा कौन? कोई अवतार नहीं, चमत्कारी पुरुष नहीं, बल्कि झारखंड की जनता और नेता ही इसका हल ढ़ंढ़ेंगे. यह हल लोकतांत्रिक रास्ते से ही संभव है. बैलेट बॉक्स की पेटी से. इसलिए हर नागरिक को पहल करनी होगी. अकर्म की पीड़ा- बेचैनी से मुक्ति पाने के लिए. मतदान में भाग लेकर. ड्राइंग रूम में बैठ कर चिंतित होने से समाज-इतिहास नहीं बनता. इसलिए मतदान, अच्छे पात्रों, विचारों, दलों का चयन, राजनीतिज्ञों से सवाल-जवाब, ऐसे सारे प्रयास ही झारखंड को तबाह होने से बचा सकते हैं. यह ‘मत चूको चौहान’ की स्थिति है.
साभार- हरिवंश जी....

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