दिग्गज वोट मांगते घूम रहे हैं। जिनके दर्शन दुर्लभ हैं, जो सुरक्षा प्राचीरों में घिरे हैं, या जिनके जीवन का महत्वपूर्ण भाग पांच सितारा सुविधाओं में कटता है, वे गली-गांव भटक रहे हैं. सड़क छान रहे हैं. यह भ्रम हम दूर कर लें कि उन्हें हम मतदाताओं की चिंता है. नहीं, वे अपने लिए, अपने दल के लिए कवायद कर रहे हैं. हर दल झोली फैला चुका है. निर्दल भी याचक हैं.पर इनकी झोली में क्या है? किसलिए ये सत्ता चाहते हैं? यह पूछिए. पग-पग पर पूछिए. क्योंकि पूछने का मौका पांच वर्ष में एक बार आता है. अपना मत देकर पांच वर्षो के लिए अपना भविष्य आप गिरवी रखते हैं, इसलिए सोच-समझ लीजिए, झांसे में मत आइए. न जाति के, न धर्म के, न क्षेत्र के, न समुदाय के. न भावना में बहिए. ठोक-पीट कर फैसला कीजिए, क्योंकि आप अपना भविष्य तय करने जा रहे हैं, इसलिए जनता भी अपना एजेंडा बनाए. जहां और जब भी मौका मिले, दलों से पूछिए, प्रत्याशियों से बार-बार पूछिए कि गरीबों के लिए आपके पास कौन सी समयबद्ध योजनाएं हैं? क्या भूख, विकास, विकेंद्रीकरण, भ्रष्टाचार, माइनिंग (खनन), सुशासन, नक्सलवाद, विस्थापन वगैरह को आप झारखंड के संदर्भ में अहम मुद्दा मानते हैं? अगर हां, तो आपके पास समाधान के क्या ब्लूप्रिंट हैं?
पूछिए, क्या झारखंड में आप पंचायत चुनाव करायेंगे? क्या नीचे तक सत्ता का विकेंद्रीकरण होगा? कैसे और कब होगा? ग्रामीण विकास योजनाएं, कैसे नीचे तक पहुंचेगी, बगैर भ्रष्टाचार के ? बिचौलिये रहेंगे या जायेंगे? जन वितरण प्रणाली कैसे ठीक होगी? इस राज्यपाल के आने के पहले, चीनी, केरोसिन वगैरह गांवों तक नहीं पहुंचते थे, फिर ऐसा न हो, इसके लिए क्या कदम उठेंगे? बिजली बोर्ड, लुट चुका है, वह राज्य में अंधेरा बांटने का केंद्र बना दिया गया। क्या आनेवाले दिनों में बिजली बोर्ड सुधरेगा? कब तक 85 वर्ष की उम्रवाले बार-बार बिजली बोर्ड के अध्यक्ष बनेंगे या उत्तराखंड से भ्रष्ट तत्वों को बुला कर उन्हें बिजली बोर्ड की कमान सौंपी जायेगी? ऐसे सारे सुलगते सवालों के क्या हल हैं, विधायक बननेवालों के पास? यह पूछिए.
सवाल अनंत हैं, क्योंकि ये सब इन्हीं राजनीतिक रहनुमाओें की देन हैं। पूछिए. युवाओं के लिए आपकी झोली में कुछ है? झारखंड लोकसेवा आयोग की परीक्षाएं पारदर्शी बनें, चयन विवादास्पद न हों, इसके लिए क्या रास्ते अपनाये जायेंगे? कॉलेजों, विश्वविद्यालयों और स्कूलों के बारे में सरकार बनानेवालों के पास क्या ठोस प्रस्ताव हैं? केंद्र की मंजूरी मिलने के बाद नौ वर्ष हो गये, लॉ इंस्टीट्यूट नहीं बना. दो-ढाई वर्ष से आइआइटी, आइआइएम के प्रस्ताव मारे-मारे फिर रहे हैं. न अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज खुले, न प्रबंधन के बेहतर संस्थान, न मेडिकल कॉलेज. क्या ये सवाल हमारे होनेवाले शासकों की जेहन में हैं? क्या झारखंड के भूखों को कम दर पर अनाज देने के लिए कोई तैयार है? झारखंड में गरीबों की संख्या को लेकर विवाद है. एनसी सक्सेना की रिपोर्ट मानें, तो झारखंड के गांवों के 80 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं. पर झारखंड सरकार मानती है 29 लाख लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं. केंद्र सरकार कहती है सिर्फ 25 लाख लोग झारखंड में गरीबी रेखा के नीचे हैं. यह संख्या निर्धारण कैसे होगा? कौन करेगा? यह सवाल किसी दल के एजेंडा में है? क्योंकि गरीबों की संख्या के आधार से ही केंद्र से अनाज, केरोसिन, राहत वगैरह मिलती है. सरकार के 2004-05 के आंकड़ों (एनएसएस) के अनुसार, झारखंड के 60 फीसदी निर्धनतम लोगों के पास कार्ड नहीं हैं. गरीबों के लिए बना ‘सपोर्ट सिस्टम’ (राहत योजनाएं) ध्वस्त हैं. लाल कार्ड नहीं है. जनवितरण प्रणाली लगभग ठप है. देश के सबसे निर्धनतम नौ जिले झारखंड में हैं. क्या ये सवाल भी कहीं उठ रहे हैं? महज शब्दों तक नहीं. ठोस सुझावों के साथ.
झारखंड की खनिज संपदा ही इसके लिए अभिशाप है. खनिज मामलों में हुई सौदेबाजी ने झारखंड को पूरी दुनिया में चर्चित बना दिया है. झारखंड की खनिज संपदा लुट रही है. झामुमो के एक पूर्व मंत्री ने पिछले दिनों भाषण में कहा कि वे चीन गये थे. उन्हें देख कर खुशी हुई कि झारखंड के लौह अयस्क से चीन के स्टील कारखाने चल रहे हैं. उन्हें नहीं मालूम कि चीन स्मगल कर झारखंड से लौह अयस्क मंगा रहा है. अपना लौह अयस्क भंडार सुरक्षित रख रहा है. यह भारत सरकार की विफलता है. पर झारखंड में सरकार बनानेवालों को स्पष्ट होना चाहिए कि उनके खनिजों का इस्तेमाल कैसे होगा ? उनकी शर्तो पर, उनके हित में. या यहां के नेता खनिज से सौदेबाजी कर धन कमायेंगे और विदेश भेजेंगे? यह भी सही है कि यह खनिज संपदा हमेशा नहीं रहनेवाली. इसलिए इसके उपयोग की सार्थक नीति होनी चाहिए. यह स्पष्ट हो, पारदर्शी हो, इससे विस्थापन न हो, पर्यावरण न नष्ट हो. इन सवालों के उत्तर किसके पास हैं, यह लोगों से पूछना चाहिए. इसी तरह कोयला खनन, पत्थर काटने, स्पंज आयरन वगैरह के मुद्दे हैं. नरेगा के तहत लोगों को काम नहीं मिल रहा. कृषि क्षेत्र में झारखंड में बड़े काम होने हैं. सिंचाई में रत्ती भर वृद्धि नहीं हो रही है, पर भारी पूंजी खर्च हो रही है. यह सब कैसे हो रहा है? कौन कर रहा है? क्या ये सवाल उठेंगे? इसी तरह भ्रष्टाचार का मामला सबसे संगीन है. भ्रष्टाचार नियंत्रण के बगैर झारखंड में कुछ भी संभव नहीं. राज्य सत्ता कोलैप्स कर चुकी है. इन्हें ठीक करने का ब्लूप्रिंट किसके पास है? कौन अपराधमु माहौल दे सकता है? कैसे नक्सली समस्या से झारखंड मु हो सकता है? इन्हीं सवालों के जवाब से नया झारखंड बनेगा? मूल सवाल है कि झारखंड के ये सवाल इन चुनावों में उठ रहे हैं या नहीं? जनता सोचे, पहल करे और पूछे.
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