नमस्कार दोस्तो.... सबसे पहले तो आपका आभार प्रगट करता हू की आप यहा आए, और आअपका तहेदिल से स्वागत करता हू... दोस्तो हो सकता है आपके दिल मे ये सवाल आए की भारत जैसे सेक्युलर देश मे रहकर मैने अपने पहले पोस्ट का टाइटल इतना सेन्सिटिव क्यू रक्खा.....तो भाइयो जैसा की इंसान अपने ज़्यादातर कामो की शुरुआत ईश्वर का नाम लेकर करता है...तो दोस्तो (जहा भी दोस्तो या भाइयो का ज़िक्र है इसे पुल्लिंग और स्त्रलिंग दोनो सेन्स मे लिया जाय)मेरा ब्लॉग लिखने का ये पहला अवसर है, और जैसा की हम जानते है की धर्म ही एक ऐसा क्षेत्र है जिसने ग़लत अर्थो मे लिए जाने के कारण आज सबसे ज़्यादा समाज को बाटा है... आक कितने भी दंगे, फ़साद, अविश्वास और आतंक का माहौल है इसके मॉल मे अगर हम जाए तो पाएँगे की कही नकही धर्म की ग़लत व्याख्या ही है, ध्यान दीजिएगा धर्म नही बल्कि धर्म की ग़लत और संकीर्ण व्याख्या... सबसे पहले मे धर्म का स्वरूप बताना चाहूँगा जो की कही से भी मेरा नही है, बल्कि भगवान आदि योगेश्वर श्री कृष्णा जी द्वारा गीता के रूप मे मानव जाती को प्रदान किया गया और भगवान स्वामी आड़गदानंद जी द्वारा उसकी व्याख्या की गयी....जिसका नाम है "यथार्थ गीता"
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