16 वीं लोकसभा 2014
की लड़ाई कांटे की होगी। लेकिन चुनावी महाभारत का असली
कुरुक्षेत्र तो उत्तर प्रदेश ही होगा। देश को सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री देने वाले
उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा लोकसभा की सीटें भी हैं। हर दल और दल का नेता अपने-अपने दांव चल रहा है। लेकिन ये सत्य है की युवा हृदय सम्राट, दूरदर्शी और सोसलिस्ट महानायक सूबे के मुखिया अखिलेश
यादव राजनीति के विकासवाद की नई पटकथा गढ़ रहे हैं
मुख्यमंत्री अखिलेश
यादव
ना सिर्फ़ समाजवाद का नया चेहरा ही हैं बल्कि
समाजवादी राजनीति के नए ध्वजवाहक भी हैं। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनावों का
आकलन आज की तारीख में करना सरल जरूर होगा मगर उस वक्त बहुत मश्किल था। यह वही, अखिलेश यादव थे, जिन्होंने विधानसभा चुनावों के ठीक एक साल पहले पूरे
उत्तर प्रदेश में घूम-घूम कर राजनीति के राजनीतिक घटनाक्रम बदलने की बुनियाद रख दी थी। तब न तो राजनीतिक पंडितों को और न ही बड़े-बड़े राजनेता तथा राजनीतिक दलों को उनके राजनीतिक
रिहर्सल का पुर्वाभास हो पाया था। गली-गली और गांव-गांव में घूम रहे
समाजवादी क्रांति रथ ने मिशन 2012 की राजनीतिक क्रांति में बदल कर रख दिया। समाजवादी
पार्टी में पिता मुलायम सिंह यादव जिन्हे आज भी जनता धरतीपुत्र कहती है और स्वतंत्र भारत के इतिहास मे अपने
संघर्षो के दम पर नेताजी सुभाषचंद्र बोसजी के बाद बृहद स्तर पर नेताजी के संबोधन
से सम्मानित किए जाते है का वह चेहरा जो
गांव-गरीब और किसान से मेल खाता है, अखिलेश यादव ने कम्प्यूटर, लैपटाप से जुड़े शहरी युवाओं को भी जोड़कर समाजवादी पार्टी की नई तस्वीर बना
डाली। जो समाजवादी पार्टी गांव-गलियारे और चौपालों से जुड़ी थी, उसने शहरों के रेस्टोरेंट, साइबर कैफे और कॉनवेंट स्कूलों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी। यूपी की
दूसरी पार्टियों कांग्रेस, भाजपा और बसपा में अखिलेश की ही तरह कोई युवा चेहरा
नहीं था, कुछेक घटनाक्रमों को छोड़कर मुख्यमंत्री के दो वर्षो
के शासन से साफ जाहिर होता है कि वह आने वाले वक्त में राजनीति के जातिवाद से दूर
हटकर राजनीति के विकासवाद की ओर उत्तर प्रदेश को ले जाना चाहते हैं। दो सालों में
उन्होंने राजनीति से हटकर विकास के नए पहल किए हैं। इंटर पास छात्रों को लैपटाप, आईटी हव जैसे कदम यूपी को संचारक्रांति में तरक्की का संकेत देती है। नए
मेडिकल कालेजों की स्थापना समेत अनेक पहल से उन्होंने दूसरे राजनीतिक दलों का भी
ध्यान अपनी ओर खींचा है।
अखिलेश वैसे भी सार्वजनिक मंचों से जातिवाद की बातें करने से बचते हैं। 2012 के विधानसभा चुनावों में ऐतिहासिक जनमत मिलने के बाद उन्होंने बड़े ही साफ लहजे में कहा था कि समाज के सभी वर्गो ने उन्हें सहयोग और समर्थन दिया है। बीते दो सालों में मुख्यमंत्री पर भ्रष्टाचार का एक भी आरोप न लगना सिद्ध करता है वह एक बेहद ईमानदार नेता हैं। नहीं तो पिछली सरकार में छह महीने बाद ही भ्रष्टाचार के तमाम आरोप छोटे-बड़े नेता, मंत्री, विधायक पर लगने शुरू हो गए थे। अपराध और व्यक्तिगत दबँगाई पर भी काफ़ी हद तक अंकुश लगाया तो संस्थागत भ्रष्टाचार को रोकने मे भी ठोस तरीके से काम किया, आम जंतरा ताकि उन तक सीधी पहुच और जनता दर्शन ऐसे फ़ैसले, हर जिले मे फैले उनके व्यक्तिगत समर्थको ने भी उन तक जमीनी हक़ीकत पहुचाई, कुच्छेक षड्यंत्रो, दूराभिसंधियो और राजनैतिक विरोधियो की गंदी चालो को छोड़ दे तो दो साल का ये कार्यकाल उत्तर प्रदेश के लिए एक स्वर्णिम समय रहा है और जैसा की हमारे समाज मे कहा जाता है की पूत के पाँव पालने मे देखे जाते है तो आने वाले समय मे अगर देश मे सपा की सरकार बनी तो आने वाला समय मे देश मे भी यही स्वर्णिम काल देखने को भी मिलेगा..
अखिलेश वैसे भी सार्वजनिक मंचों से जातिवाद की बातें करने से बचते हैं। 2012 के विधानसभा चुनावों में ऐतिहासिक जनमत मिलने के बाद उन्होंने बड़े ही साफ लहजे में कहा था कि समाज के सभी वर्गो ने उन्हें सहयोग और समर्थन दिया है। बीते दो सालों में मुख्यमंत्री पर भ्रष्टाचार का एक भी आरोप न लगना सिद्ध करता है वह एक बेहद ईमानदार नेता हैं। नहीं तो पिछली सरकार में छह महीने बाद ही भ्रष्टाचार के तमाम आरोप छोटे-बड़े नेता, मंत्री, विधायक पर लगने शुरू हो गए थे। अपराध और व्यक्तिगत दबँगाई पर भी काफ़ी हद तक अंकुश लगाया तो संस्थागत भ्रष्टाचार को रोकने मे भी ठोस तरीके से काम किया, आम जंतरा ताकि उन तक सीधी पहुच और जनता दर्शन ऐसे फ़ैसले, हर जिले मे फैले उनके व्यक्तिगत समर्थको ने भी उन तक जमीनी हक़ीकत पहुचाई, कुच्छेक षड्यंत्रो, दूराभिसंधियो और राजनैतिक विरोधियो की गंदी चालो को छोड़ दे तो दो साल का ये कार्यकाल उत्तर प्रदेश के लिए एक स्वर्णिम समय रहा है और जैसा की हमारे समाज मे कहा जाता है की पूत के पाँव पालने मे देखे जाते है तो आने वाले समय मे अगर देश मे सपा की सरकार बनी तो आने वाला समय मे देश मे भी यही स्वर्णिम काल देखने को भी मिलेगा..