राजतंत्र नहीं रहा, उसकी जगह प्रजातंत्र आ गया, लेकिन अंतर क्या आया? अब एक राजा की जगह कई राजा मिल कर आम आदमी का शोषण करते हैं, वह भी इतनी सफाई से कि आम आदमी को भनक तक नहीं लगती. कुछ ऐसे ही राजाओं की ख़बर ली है चौथी दुनिया ने. आरटीआई से मिली सूचना के मुताबिक़, इन राजाओं की प्यास बुझाने के लिए आम आदमी को अपनी करोडों़ की कमाई गंवानी पड़ रही है. अपना घर अंधेरे में रखकर राजाओं के आलीशान महलों (मुख्यमंत्री आवास) को रोशन कर रहा है आम आदमी. खु़द के सिर पर छत नहीं, लेकिन वह इन राजाओं के महलों की पेंटिंग पर ही लाखों रुपये ख़र्च कर रहा है.
राज्य के मुख्यमंत्री भी जनता की जेब ढीली कर सुख-सुविधा भोगने में पीछे नहीं हैं. वह भी तब, जब दिल्ली जैसे शहर में 80 हजा़र से ज़्यादा लोगों के सिर पर छत नहीं है. विदर्भ में अब तक 2 लाख से ज़्यादा किसान असमय मौत को गले लगा चुके हैं. उत्तर प्रदेश में हर साल सैकडों़ बच्चे इंसेफ्लाइटिस की वजह से दम तोड़ देते हैं, लेकिन इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों की जीवनशैली पर नज़र डालें तो एक अलग ही तस्वीर दिखाई देती है. चमक-दमक से भरपूर तस्वीर. बिल्कुल इंडिया शाइनिंग की तरह. जिस देश की एक बडी़ आबादी को पीने का साफ पानी मयस्सर नहीं, वहीं इन राज्यों में से एक के मुख्यमंत्री आवास का पानी का बिल 62 लाख रुपये आए तो इसे आप क्या कहेंगे? उत्तर प्रदेश या महाराष्ट्र के कितने गांवों तक बिजली पहुंची है. और अगर पहुंचती भी है तो कितने घंटों के लिए, यह रिसर्च का मामला हो सकता है, लेकिन इन दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री अपने आवास को रोशन करने के लिए महीने में 20 लाख रुपये से ज़्यादा बिजली पर ख़र्च कर देते हों तो इसे आप क्या कहेंगे? चौथी दुनिया ने उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री आवास पर होने वाले ख़र्च का ब्योरा आरटीआई के ज़रिए जुटाया है. प्राप्त सूचना के विश्लेषण से पता चलता है कि कैसे आम आदमी की गाढी़ कमाई इन राज्यों के मुख्यमंत्री आवासों पर बेहिसाब ख़र्च की जा रही है.
प्रधानमंत्री भले ही अपने मंत्रियों को विदेश दौरे न करने, सरकारी ख़र्च घटाने की सलाह देते रहते हैं, लेकिन महाराष्ट्र में उन्हीं की पार्टी के मुख्यमंत्री अपने आवास की रंगाई-पुताई पर पांच सालों में 86 लाख रुपया पानी की तरह बहा देते हैं. उत्तर प्रदेश में मायावती की शाही आदत के मुताबिक़ ही उनके आवास के रखरखाव पर बेशुमार पैसा ख़र्च किया जा रहा है. और यह सब कुछ हो रहा है एक ऐसे देश में, जहां का हर तीसरा नागरिक ग़रीब है. 70 फीसदी आबादी की रोज की आय 20 रुपये से भी कम है. ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2009 के आंकडों़ के मुताबिक़, भारत में भूखे एवं कुपोषित लोगों की संख्या पाकिस्तान, नेपाल, सूडान, पेरू, मालावी और मंगोलिया जैसे देशों से भी ज़्यादा है. पांच साल से कम उम्र के अंडरवेट (उम्र के हिसाब से कम वजन) बच्चों की सूची में भारत की हालत बांग्लादेश, पूर्वी तिमोर और यमन जैसी है.
भारत में नाइजीरिया के मुका़बले ज़्यादा भूखे और कुपोषित लोग हैं. देश की राजधानी दिल्ली की जन वितरण प्रणाली के तहत ज़्यादातर ग़रीब परिवारों के पास राशनकार्ड नहीं हैं. एपीएल कोटे वाले के पास बीपीएल कार्ड हैं. उत्तर प्रदेश एवं महाराष्ट्र में किसान मर रहे हैं, लेकिन इस सबसे बेपरवाह हमारे माननीय मुख्यमंत्रीगण इसी धरती पर स्वर्ग का मजा़ ले रहे हैं.
यह सब कुछ एक ऐसे देश में हो रहा है , जहां का हर तीसरा नागरिक ग़रीब है. ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2009 के आंकडों़ के मुताबिक़, भारत में भूखे एवं कुपोषित लोगों की संख्या पाकिस्तान, नेपाल, सूडान, पेरू, मालावी और मंगोलिया जैसे देशों से भी ज़्यादा है. अंडरवेट बच्चों की सूची में भारत की हालत बांग्लादेश, पूर्वी तिमोर और यमन जैसी है. जन वितरण प्रणाली के तहत ज़्यादातर ग़रीब परिवारों के पास राशनकार्ड नहीं हैं. उत्तर प्रदेश एवं महाराष्ट्र में किसान मर रहे हैं. लेकिन हमारे माननीय मुख्यमंत्रीगण इसी धरती पर स्वर्ग का मजा़ ले रहे हैं.
Saujany-चौथी दुनिया
Monday, December 13, 2010
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